“देखो हिस्ट्री सबने पढ़ी है और बार-बार पढ़ी है। कुछ हिस्ट्री बड़े पर्दे पर भी हमने देखी है। कुछ छोटे पर्दे पर भी। लेकिन क्या होगा जब आपको बताया जाए कि जो तुमने हिस्ट्री के बुक में पढ़ा वो गलत था या तुमको गलत बातें पढ़ा के बहकाया जा रहा था।“
इन्हीं पंक्तियों से शुरू होती है चर्चा उस फिल्म की, जो आज सोशल मीडिया से लेकर थिएटर के सीमित शोज़ तक, हर जगह हलचल मचा रही है — ‘His Story Of Itihaas’। इस फिल्म ने इतिहास के उन पन्नों को पलटने की कोशिश की है जिन्हें सालों से ‘अंतिम सच’ मानकर पढ़ाया गया।
📽️ फिल्म का परिचय और कहानी का सार
मराठी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता सुबोध भावे इस फिल्म में लीड रोल में हैं। फिल्म की कहानी एक साधारण फिजिक्स टीचर की है, जो अपनी बेटी की किताबों में पढ़ाए जा रहे इतिहास को लेकर सवाल उठाता है। जब वो गहराई से खुद अध्ययन करता है, तब सामने आते हैं ऐसे तथ्यों के टुकड़े जो चौंका देने वाले हैं।
फिल्म दिखाती है कि कैसे इतिहास को राजनीतिक फायदे के लिए तोड़ा-मरोड़ा गया और किस प्रकार मुग़ल शासकों को ग्लोरिफाई करते हुए भारत की मूल संस्कृति और घटनाओं को दबा दिया गया।
📖 “Brainwashed Republic” का प्रभाव
इस फिल्म की कहानी लेखक नीरज अत्री की चर्चित किताब ‘Brainwashed Republic’ पर आधारित है। किताब का मुख्य तर्क यह है कि भारत की स्कूलों में जो इतिहास पढ़ाया गया, वह एक राजनीतिक दृष्टिकोण से गढ़ी गई काल्पनिक कहानी है — वास्तविकता नहीं।
नीरज अत्री मानते हैं कि आजादी के बाद सत्ता में आए लोगों ने इतिहास को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया, ताकि एक खास नेरेटिव खड़ा किया जा सके। इसी नेरेटिव के खिलाफ आवाज़ उठाती है ‘हिज स्टोरी ऑफ इतिहास’।
🕌 अकबर, टीपू सुल्तान और जातिवाद पर सवाल
फिल्म उन मुद्दों को छूती है जिन्हें अक्सर छूना विवादित माना जाता है। जैसे:
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अकबर को “अकबर द ग्रेट” क्यों कहा गया?
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टीपू सुल्तान को क्रांतिकारी या धार्मिक कट्टरपंथी?
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जातिवाद कैसे अस्तित्व में आया?
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ब्रिटिश शासन ने कैसे भारत को जातिगत आधार पर बांटा?
इन विषयों पर फिल्म कोई निर्णय नहीं देती, बल्कि दर्शकों के सामने सवाल छोड़ती है — “क्या हमने जो पढ़ा वो सच था?”
🧠 ब्रेनवॉश पब्लिक और वेस्टर्न कल्चर की आलोचना
फिल्म का एक बड़ा हिस्सा इस बात पर केंद्रित है कि कैसे भारतीय समाज को धीरे-धीरे वेस्टर्न कल्चर के प्रभाव में ढाला गया। फिल्म उन प्रतीकों को दिखाती है जो आज ‘कूल’ माने जाते हैं — जैसे अंग्रेज़ी बोलना, छोटे कपड़े पहनना, चम्मच से खाना, ‘हाय-हेलो’ वाली सभ्यता — और पूछती है कि क्या हमने अपनी संस्कृति को त्याग कर किसी और की संस्कृति को अपनाया है?
यह सिर्फ सवाल है, जवाब नहीं — लेकिन सवाल ही काफी बड़ा है।
🧑🏫 शिक्षा प्रणाली पर कटाक्ष
फिल्म में शिक्षा प्रणाली को लेकर भी तीखा कटाक्ष किया गया है। कैसे स्कूलों में बच्चों को ऐसी किताबें पढ़ाई जाती हैं जो ऐतिहासिक तथ्यों की जगह एक पॉलिटिकली करेक्ट नैरेटिव पेश करती हैं।
फिल्म दिखाती है कि कैसे एक आम शिक्षक, जब इन बातों को खुद समझने की कोशिश करता है, तब उसे असल इतिहास के ऐसे पक्ष मिलते हैं जिन्हें जानकर हर दर्शक सन्न रह जाता है।
🎭 सशक्त अभिनय और डायलॉग्स

सुबोध भावे का अभिनय फिल्म की सबसे मजबूत कड़ी है। उनकी आंखों में सवाल हैं, आवाज़ में बेचैनी है, और चेहरे पर एक आम भारतीय की वह बेचैनी जो सोचता है — “क्या हम सबको बेवकूफ बनाया गया?”
एक खास सीन जिसमें तथाकथित इतिहासकार और शिक्षक आमने-सामने बैठते हैं और इतिहास को लेकर बहस होती है, वह सीन फिल्म का क्लाइमेक्स मोमेंट बन जाता है।
🎶 संगीत, सिनेमैटोग्राफी और तकनीकी पक्ष
फिल्म में कोई बेवजह के गाने नहीं हैं। दो गाने हैं, जिनमें से एक कहानी को आगे बढ़ाता है और दूसरा एंड क्रेडिट में है। सिनेमैटोग्राफी साधारण है, लेकिन इतनी ही होनी भी चाहिए थी — क्योंकि यह फिल्म दिखावे से ज्यादा कंटेंट और मैसेज पर फोकस करती है।
📍 थिएटर में लिमिटेड रिलीज़ और व्यूअरशिप की समस्या
फिल्म की रिलीज़ को लेकर दर्शकों में एक और बड़ी शिकायत है — बहुत ही कम थिएटरों में शो उपलब्ध हैं। नागपुर जैसे बड़े शहर में भी सिर्फ एक थिएटर और वह भी सिर्फ एक शो।
यह दिखाता है कि इतनी गंभीर विषयवस्तु वाली फिल्म को शायद कुछ समूहों या पॉलिटिकल कारणों से दबाया जा रहा है। फिल्म अगर सही मायनों में सबके सामने आती, तो यह पब्लिक अवेयरनेस की दिशा में एक क्रांति बन सकती थी।
💬मैं देता हु — “4 आउट ऑफ 5 स्टार्स”
इस फिल्म को देखने के बाद यूट्यूबर योगी ने इसे 4 स्टार्स दिए हैं। उनके अनुसार:
“यह फिल्म सिर्फ एक मूवी नहीं, बल्कि आपके अंदर सवाल पैदा करने वाला आईना है।”
मेरा मानना है कि 16+ उम्र के लोग, खासकर कॉलेज और यूनिवर्सिटी के छात्र, इस फिल्म को जरूर देखें और खुद से यह सवाल करें — क्या इतिहास में जो हमें बताया गया, वो पूरा सच था या बस एक राजनीतिक एजेंडा?